नाना पुराण निगमागम,,,,।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,भाषा निबन्ध मतिमञ्जुलमातनोति।।
।श्रीरामचरित मानस।
भावार्थः---
भाषा निबन्ध लिखने के बाद भी संस्कृत भाषा में प्रत्येक सोपान के प्रारम्भ में मङ्गलाचारण व अन्य कई स्थलों पर श्लोक लिखने के कई कारण हैं।यथा,,,
1--संस्कृत देववाणी है अतः पवित्र व माङ्गलिक है।
2--वेद,शास्त्र,उपनिषद,पुराण,बाल्मीकीय रामायण सहित अनेक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही हैं जिनका गो0जी ने आश्रय व आधार लिया है।
3--देववाणी प्रभावोत्पादक होती है।
4--कथावाचन करने में देववाणी में ही मङ्गलाचरण करने की परम्परा है।
श्रीरामचरितमानस की भाषा को अति मञ्जुल कहने के निम्न कारण हैं---
1--यह रामचरितमानस मूलरूप से भगवान शिव जी द्वारा विरचित है।यथा,,
रचि महेस निज मानस राखा।
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा।।
यत्पूर्वम् प्रभुणा कृतं सुकविना श्रीशम्भूना दुर्गमम्।
2--यह श्रीरामचरितमानस श्री हनुमानजी जी की प्रेरणा व सहायता से लिखा गया।
3--गो0जी को माता सीताजी की कृपा से निर्मल बुद्धि प्राप्त हो गई थी।गो0जी ने स्वयं लिखा है--
जनकसुता जगजननि जानकी।
अतिशय प्रिय करुनानिधान की।।
ताकें जुग पद कमल मनावउँ।
जासु कृपा निर्मल मति पावउँ।।
मानसरूपक,चार सुन्दर सम्वादरूपी घाटों तथा भाषा के सभी अंगों से परिपूर्ण होने के कारण यह श्रीरामचरितमानस अति मञ्जुल ग्रन्थ हो गया।इसमें अवधी,मिथिला,ब्रज,भोजपुरी,अरबी,फारसी,
बुन्देलखण्डी,सरयूपारी,
राजस्थानी आदि अनेक भाषाओं का प्रयोग किया गया है जिससे यह अति मञ्जुल व मनोहर बन गया है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
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