श्रीरामचरितमानस

मूक होइ वाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन।।
।श्रीरामचरितमानस।
 जिसकी कृपा से गूँगा बहुत सुन्दर बोलने वाला हो जाता है और लँगड़ा लूला दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है, वह कलियुग के समस्त पापों को जला देने वाली सत्ता अथवा शक्ति मुझ पर द्रवित हों अर्थात दया करें।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  आधुनिक युग के तुलसी कहे जाने वाले विश्वविख्यात रामकथा गायक श्रीमोरारीबापू के मतानुसार गो0जी ने यह सोरठा माँ(शक्ति) की वन्दना हेतु लिखा है।बापू के अनुसार सनातन धर्म(हिन्दू)में पाँच प्रमुख सम्प्रदाय हैं--
1--वैष्णव सम्प्रदाय, जिसमें भगवान विष्णु और उनके अवतारों--राम,कृष्ण आदि की उपासना की जाती है।
2--शैव सम्प्रदाय, जिसमें भगवान शिव की उपासना की जाती है।
3--शाक्त सम्प्रदाय, जिसमें शक्ति(नवदुर्गा) की उपासना की जाती है।(मुख्य रूप से बंगाल में)
4--गाणपत्य सम्प्रदाय,जिसमें गणेश जी की उपासना की जाती है।(महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों में)
5--सूर्य सिद्धान्ती सम्प्रदाय, जिसमें भगवान सूर्य की उपासना की जाती है।(बिहार,पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि राज्य)
 श्रीमोरारीबापू के मतानुसार शिशु जन्म के समय मूक अर्थात लगभग गूँगा व पंगु अर्थात चलने फिरने में असमर्थ होता है।वह सबसे पहले मुख से मा शब्द का ही उच्चारण करता है।उसे सर्वप्रथम बोलना व चलना फिरना माँ ही सिखाती है।उस ममतामयी माँ की कृपा से ही कलियुग के समस्त पापों का दहन हो जाता है।इस आधार पर यह सिद्ध होता है कि गो0जी ने यह सोरठा शक्ति अर्थात माँ की वन्दना में लिखा है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।