हरिहर

हरि हर जस राकेस राहु से।
पर अकाज भट सहसबाहु से।।
जे पर दोष लखहिं सहसाखी।
परहित घृत जिन्ह के मन माखी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी दुष्टों की वन्दना करते हुए कहते हैं कि जो हरि और हर के यशरूपी पूर्णिमा के चन्द्रमा के लिए राहु के समान हैं और जो दूसरों के दोषों को हजार आँखों से देखते हैं और दूसरों के हितरूपी घी के लिए जिनका मन मक्खी के समान है, मैं उनकी वन्दना करता हूँ।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  दुष्टजनों का यह स्वभाव ही होता है कि जहाँ कहीं भी भगवान विष्णु और उनके अवतारों--प्रभुश्री राम,वासुदेव कृष्ण आदि व भगवान शिवजी की कथाओं व यश का वर्णन होता है,वे उसमें बाधा डालते हैं।क्योंकि मोह के कारण वे सभी से द्वेष भाव रखते हैं और उन्हें सत्संग या भगवान की कथा अच्छी नहीं लगती है।यथा,,
करहिं मोहबस द्रोह परावा।
सन्त संग हरिकथा न भावा।।
हरिहरजस कहने का भाव यह है कि जब हरि और हर दोनों का यश कहें तभी यश की पूर्णता होती है।इसी आधार पर गो0जी ने श्रीरामचरितमानस में प्रभुश्री रामजी की कथा के साथ भगवान शिव का चरित्र भी कहा है।जिस प्रकार राहु पूर्ण चन्द्रमा को ग्रसित करता है, उसी प्रकार दुष्टजनों को हरि और हर की कथा अप्रिय लगती है।
  जिस प्रकार मक्खी घी में गिरकर उसे खराब कर देती है और स्वयं भी मर जाती है, उसी प्रकार दुष्टजन भी अपना अहित होने पर भी दूसरों के कार्य में विघ्न डालकर उसे बिगाड़ने का प्रयास करते रहते हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।