मानस प्रसंग


*श्रीराम चरित मानस प्रशंग*
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*सुधा सुरा सम साधु असाधू।*
*जनक एक जग जलधि अगाधू।।*
*भल अनभल निज निज करतूती।*
*लहत सुजस अपलोक बिभूती।।*
*अर्थात्....* 🌹🌹🌹
साधु अमृत के समान मृत्यु रूपी संसार से उबारने वाला है और असाधु मदिरा के समान मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करने वाला है।यद्यपि दोनों को उत्पन्न करने वाला जगतरूपी अगाध समुद्र एक ही है।
भले और बुरे अपनी अपनी करनी के अनुसार सुन्दर यश और अपयश की सम्पत्ति प्राप्त करते हैं।
*।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।*
*भावार्थः---* 🌺🌺🌺
अमृत और वारुणी दोनों का जनक अथवा उत्पत्ति का स्थान एक ही है। सागर मन्थन में निकले चौदह रत्नों में मदिरा और अमृत दोनों ही थे। इसी प्रकार साधु और असाधु दोनों इसी संसार में ही जन्मते हैं किन्तु उनके स्वभाव में बड़ा अन्तर होता है। जिस प्रकार सुधापान से अमरत्व की और मदिरापान से उन्मादत्व की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार साधु से भगवद्भक्ति और परम् पद की प्राप्ति होती है और असाधु से दुःख, उपेक्षा और नर्क की प्राप्ति होती है।
जिस प्रकार कमल और अमृत अपने गुणों के कारण वन्दनीय हैं उसी प्रकार जोंक और मदिरा अपने अवगुणों के कारण अपयश के भागी होते हैं। दोनों ही अपनी करनी के अनुसार ही यश व अपयश प्राप्त करते हैं। सुयशरूपी  विभूति से स्वर्ग की प्राप्ति होती है तथा अपयशरूपी विभूति से यमलोक अथवा नरक की प्राप्ति होती है।
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*।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।*💐💐💐💐