तेज कृसानु रोष महिसेषा।
अघ अवगुन धन धनी धनेसा।।
उदय केतु सम हित सबही के।
कुम्भकरन सम सोवत नीके।।
।श्रीरामचरितमानस।
जो दूसरों को जलाने वाले ताप में अग्नि और क्रोध में यमराज के समान हैं, पाप और अवगुणरूपी धन में कुबेर के समान धनी हैं, जिनकी वृद्धि सभी के हित का नाश करने के लिए पुच्छल तारे के समान है और जिनके कुम्भकर्ण की तरह सोते रहने में ही भलाई है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
यहाँ तेज कृसानु में तेज का तात्पर्य बल व वैभव आदि की प्रचण्डता से है।जैसे अग्नि स्वयं तप्त है और दूसरों को भी अपनी आँच से जला देती है वैसे ही खल भी मित्र,शत्रु, उदासीन सभी का अहित कर देते हैं।जैसे अग्नि घी,ईंधन,कपूर,गुग्गुल,राल आदि की आहुतियों से अधिक प्रचण्ड हो जाती है वैसे ही खल भी अधिक बल व वैभव पाकर दूसरों को हानि पहुँचाते हैं।अग्नि की तरह खलों का भी मुख क्रोध के कारण जलने से लाल दिखाई देता है।
जैसे यमराज पापी प्राणियों के प्राण हरते समय कठोर दण्ड देते हैं, उसी प्रकार खल भी दूसरों को प्राणदण्ड तक दे देते हैं और मरणोपरांत भी उनके परिजनों को भी कष्ट देते रहते हैं।
दुष्टजनों की उन्नति केतु अर्थात पुच्छल तारे की तरह ही कष्टदायक होती है।यह तारा जब जिस देश में उदित होता है तब वहाँ विभिन्न प्रकार की बीमारियां होने लगती हैं।यथा,,
दुष्ट उदय जग आरति हेतू।
जथा प्रसिद्ध अधम ग्रह केतू।।
अतः इनका कुम्भकर्ण की तरह सोते रहना ही अच्छा है।रामायण की कथा के अनुसार कुम्भकर्ण छः महीने सोता था और केवल एक दिन जागता था और उसी दिन बहुत से जीवों का आहार कर लेता था।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
श्रीरामचरितमानस