बन्दउँ सन्त असज्जन चरना।
दुखप्रद उभय बीच कछु बरना।।
बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं।
मिलत एक दुख दारुन देहीं।।
उपजहिं एक संग जग माहीं।
जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं।।
।श्रीरामचरितमानस।
अब मैं सन्त और असन्त दोनों के चरणों की वन्दना करता हूँ।दोनों ही दुःख देने वाले हैं परन्तु उनमें कुछ अन्तर कहा गया है कि सन्तजन तो बिछड़ते समय प्राण हर लेते हैं और असन्त मिलने पर दारुण दुःख देते हैं।सन्त और असन्त दोनों जगत में एक साथ पैदा होते हैं परन्तु कमल और जोंक की तरह उनके गुण अलग अलग होते हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
सन्तों और असन्तों के चरणों की एक साथ वन्दना करने का गो0जी का भाव यह है कि दोनों की जाति,उत्पत्ति,प्रणाली, स्थान,देश आदि एक होने पर भी उनके लक्षणों में भिन्नता होती है।जैसे विष और अमृत दोनों समुद्र मंथन से निकले किन्तु उनके गुण व दोष पृथक पृथक हैं।सन्तों का वियोग तथा असन्तों का मिलना ही दुखदायी होता है।साधु अथवा सन्तजन अपने समागम से भगवच्चरित रूपी अमृत का पान कराता है, अतः उसके वियोग से कथामृतरूपी औषधि न मिलने से प्राणी का प्राण जाने लगता है।जैसे प्रभुश्री रामजी के वनगमन से अवधवासियों के तथा भगवान श्रीकृष्ण के वियोग से बृज की गोपियों के प्राण।इसी प्रकार खल के मिलने से उसके कठोरवचनरूपी विष से प्राणी के प्राण जाने लगते हैं जैसे यतिवेषधारी रावण के मिलने से माँ सीताजी के तथा ताड़का, सुबाहु आदि के संयोग से गुरु विश्वामित्र जी के।
एक सन्त के मतानुसार सन्त और असन्त दोनों की एक साथ वन्दना करने का गो0जी का मुख्य उद्देश्य यह है कि सन्तों में तो दुष्टों के अवगुण आयेंगे नहीं,कदाचित सन्तों के गुण असन्तों में आ ही जायँ जैसे पुष्पों की सुगन्ध से मिट्टी सुगन्धित हो जाती है लेकिन मिट्टी की गन्ध पुष्पों में नहीं आती है।इसी प्रकार कमल और जोंक दोनों की उत्पत्ति का स्थान जल है किन्तु उनके गुण पृथक पृथक होते हैं।कमल अपने गुणों से सुख व आनन्द देता है जबकि जोंक रक्त चूसकर दुःख देती है।सन्त और असन्त भी एक ही घर में पैदा होने पर भी अलग अलग गुणों व स्वभाव के हो सकते हैं।जैसे हिरण्यकश्यपु और भक्त प्रहलाद, रावण और विभीषण, कौरव और पाण्डव आदि।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
श्रीरामचरितमानस