कलि के कबिन्ह करउँ परनामा।
जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा।।
जे प्राकृत कबि परम सयाने।
भाषा जिन्ह हरि चरित बखाने।।
भये जे अहहिं जे होइहहिं आगे।
प्रनवउँ सबहि कपट सब त्यागे।।
होहु प्रसन्न देहु बरदानू।
साधु समाज भनिति सनमानू।।
जो प्रबन्ध बुध नहिं आदरहीं।
सो श्रम बादि बाल कबि करहीं।।
।श्रीरामचरितमानस।
गो0जी कहते हैं कि मैं कलियुग के उन सभी कवियों को प्रणाम करता हूँ जिन्होंने प्रभुश्री रामजी के गुणसमूहों का वर्णन किया है।जो बड़े बुद्धिमान प्राकृत कवि हैं और जिन्होंने भाषा में हरिचरित्रों का वर्णन किया है,जो ऐसे कवि पहले हो चुके हैं और जो आगे होंगे उन सभी को मैं समस्त कपट का त्याग करके प्रणाम करता हूँ।आप सब प्रसन्न होकर यह वरदान दीजिये कि साधुसमाज में मेरी कविता का सम्मान हो क्योंकि बुद्धिमान लोग जिस कविता का सम्मान नहीं करते, मूर्ख कवि ही उसकी रचना का व्यर्थ परिश्रम करते हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
गो0जी इन पंक्तियों में प्रभुश्री रामजी के गुणसमूहों का वर्णन करने वाले कलियुग के समस्त कवियों को प्रणाम करते हैं जिनमें महाकवि कालिदास,भवभूति,कम्बन,विद्यापति आदि प्रमुख हैं।इससे पूर्व वे व्यासजी आदि अन्य युगों के कवियों की वन्दना कर चुके हैं।
ईसा से तीन सौ वर्ष पूर्व की भाषा को प्राकृत भाषा कहा जाता है जिसमें पाली भाषा प्रमुख है।जैन व बौद्ध धर्म के ग्रँथ पाली भाषा में ही हैं।इसके अतिरिक्त सँस्कृत के विकृत स्वरूप और हिन्दी की प्रारम्भिक भाषा को भी प्राकृत भाषा कहा जाता है।जिनमें बृजभाषा, अवधी, मैथिली व मागधी,भोजपुरी आदि प्रमुख हैं।
इनके अतिरिक्त गो0जी अपने से पूर्व के,अपने समय के, जिनमें सूरदासजी आदि अष्टछाप के कवि हैं और भविष्य के कवियों को कपट का त्याग करके प्रणाम करते हैं और सभी से यह प्रार्थना करते हैं कि उनकी यह कविता साधुसमाज में सम्मान प्राप्त कर सके क्योंकि जिस कविता का सन्तजन सम्मान नहीं करते हैं उसकी रचना में व्यर्थ का ही परिश्रम करना पड़ता है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
Shriramcharitmanas