बन्दउँ नाम राम रघुबर को।
हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।
।श्रीरामचरितमानस।
मैं प्रभुश्री रघुनाथजी के राम नाम की वन्दना करता हूँ जो अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा का हेतु अर्थात बीजाक्षर है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
श्रीराम नाम में रेफ,रेफ की अकार,दीर्घाकार, हल मकार और मकार की अकार ये पंच पदार्थ हैं।इनके बिना एक भी मन्त्र,ऋचा वा सूत्र नहीं बनते हैं।
वेदों में व्याकरणों में जितने भी वर्ण,स्वर व शब्द हैं, वे सब राम नाम से ही उत्पन्न होते हैं।महारामायण में ऐसा कहा गया है।यथा,,,
वेदे व्याकरणे चैव ये च वर्णा स्वराः स्मृताः।
रामनाम्नैव ते सर्वे जाता नैवात्र संशयः।।
भगवान के सभी नाम सच्चिदानन्द रूप हैं।तथापि राम नाम में अन्य सभी नामों से कुछ अधिक विशेषता है क्योंकि इसके तीनों अक्षरों--र,आ,म में सच्चिदानन्द अर्थात सत,चित व आनन्द का अभिप्राय स्पष्ट झलकता है।अन्य नामों में किसी में सत और चित मुख्य हैं व आनन्द गौण है।किसी नाम में सत व आनन्द मुख्य हैं व चित गौण है तथा किसी नाम में चित व आनन्द मुख्य हैं और सत गौण है।राम नाम में र अर्थात रकार चित का,अकार सत का व मकार आनन्द का वाचक है।यथा,,,
रमन्ते योगिनो$न्नते सत्यानन्दे चिदात्मनि।
इति रामपदेनासौ परम् ब्रह्माभिधीयते।।
श्रीरामचरितमानस में भी कई स्थलों पर गो0जी ने राम नाम की महिमा का गान किया है।नामकरण संस्कार में गुरु वशिष्ठ जीकहते हैं---
इन्ह के नाम अनेक अनूपा।
मैं नृप कहब स्वमति अनुरूपा।।
जो आनन्द सिंधु सुखरासी।
सीकर ते त्रैलोक उपासी।।
सो सुखधाम राम अस नामा।
अखिल लोक दायक बिश्रामा।।
अरण्यकाण्ड में भी श्री नारदजी प्रभुश्री रामजी से वर माँगते हुये कहते हैं---
जद्यपि प्रभु के नाम अनेका।
श्रुति कह अधिक एक ते एका।।
राम सकल नामन्ह ते अधिका।
होउ नाथ अघ खग गन बधिका।।
राका रजनी भगति तव राम नाम सोइ सोम।
अपर नाम उडगन बिमल बसहुँ भगत उर ब्योम।।
एवमस्तु मुनि सन कहेउ कृपासिंधु रघुनाथ।
तब नारद मन हरष अति प्रभु पद नायउ माथ।।
कुछ अन्य भावार्थ कल।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
Jay Sitaram