Hanuman Stuti

।।हनुमत-स्तुति।।
 परमपूज्य श्रीमद्गोस्वामीजी ने विनय पत्रिका में श्रीहनुमानजी की स्तुति में जो पद लिखे हैं, उनमें से एक पद राग बिलावल में निम्नवत है---
अति आरत,अति स्वारथी, अति दीन-दुखारी।
इनको बिलगु न मानिये,
बोलहिं न बिचारी।।
लोकरीति देखी सुनी, व्याकुल नर-नारी।
अति बरषे अनबरसेहुँ,
देहिं दैवहिं गारी।।
नाकहि आये नाथसों,साँसति भय भारी।
कहि आयो,कीबी छमा,
निज ओर निहारी।।
समै साँकरे सुमिरिये,
समरथ हितकारी।
सो सब बिधि ऊबर करै,
अपराध बिसारी।।
बिगरी सेवक की सदा,
साहेबहिं सुधारी।
तुलसी तेरी कृपा,
निरुपाधि निरारी।।
  अर्थ---
 हे हनुमानजी!अति पीड़ित,अति स्वार्थी,अति दीन और अति दुःखी के कहे का बुरा नहीं मानना चाहिए, क्योंकि ये घबराये हुये रहने के कारण भले बुरे का विचार करके नहीं बोलते।संसार में यह प्रत्यक्ष देखा सुना जाता है कि वर्षा अधिक होने या बिल्कुल न होने पर व्याकुल हुये स्त्री-पुरुष दैव को गालियाँ सुनाया करते हैं परन्तु इसका परमेश्वर कोई ख्याल नहीं करता।जब कलियुग के कष्ट और भवसागर के भारी भय से मेरे नाकों में दम आ गया, तभी मैं भली-बुरी कह बैठा।अब तुम अपनी भक्तवत्सलता की ओर देखकर मुझे क्षमा कर दो।संकट के समय लोग समर्थ और अपने हितकारी को ही याद करते हैं और वह भी उनके सारे अपराधों को भुलाकर उनकी सब प्रकार से रक्षा करता है।सेवक की भूलों को सदा से स्वामी ही सुधारते आये हैं।फिर इस तुलसीदास पर तो तुम्हारी एक निराली एवं निश्छल कृपा है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।