mitti ka fraj

मिट्टी का फर्ज़। सभी कम्पनियाँ और उत्पादक जब अपनी उत्पादों का मूल्य स्वयं तय करती है किसान अपने उत्पाद का विक्रय मूल्य क्यूँ  नहीं तय कर सकता? किसान कड़ी मेहनत से फसल तैयार करता है पर जब बेचने मंडी जाता है, तो क्यों अपने उत्पाद का कीमत खुद तय नही कर पाता ?व्यापारी उसके माल की कीमत अपने हिसाब से तय क्यो करते हैं? अभी वैश्विक महामारी में कुछ कंपनियों ने तो रातों रात अपने उत्पाद का मूल्य अनाप- शनाप बढ़ा कर इस महामारी में भी लाभ ढूंढ लिया। जब की सामान्य आदमी की आवश्यकताए बहुत ही सीमित है जो किसान पूरा करता है। हैम देखें तो किसान से ख़रीदे आलू की uncle Chips पर भी उसकी कीमत कंपनी द्वारा तय की जाती है। माचिस की डिब्बी पर भी उसकी कीमत उत्पादक द्वारा ही लिखी होती है।किसान का उत्पाद बिक जाता है, किंतु क़ीमत उसकी लागत के अनुरूप नहीं मिल पाती है। फिर भी किसान प्रतिदिन एक नयी उम्मीद , एक नई आशा एक नये सपने के साथ नई फसल की तैयारी के लिये जुटा रहता है। आप सभी कभी खेत में किसान की हालत के बारे में विचार कीजिये। चिलचिलाती धूप में सिर का पसीना पैर तक बहाता है। फिर भी काम पर जुटा रहता है। वो खेतों में नंगे पैर घूमता है। सभी मौसम की मार झेलता है। बेमौसम बरसात , ओले , आँधी , सूखा , फसलों में नाश करती नीलगाय , अन्य जानवर कैसे फसलों को नुकसान करतें है जिस दिन ये वास्तविकता आप अपनी आँखों से देख लेंगे, उस दिन आपके किचन में रखी हुई सब्ज़ी, प्याज़, गेहूँ, चावल, दाल, फल, मसाले, दूध सब सस्ते लगने लगेंगे। यही असलियत है किसान की। मेरे पूज्य पिताजी के अभिन्न मित्र, भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर संकटा प्रसाद सिंह जी कहा कहते थे, कि किसान मरेगा तो बचेगा कौन और किसान बचेगा तो मरेगा कौन? अतः इस वैश्विक महामारी में किसान-अन्नदाताओं को भी स्मरण करें और जब भी किसान दिखे तो उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखें। अब सत्ता प्रतिष्ठान को भी आगे आकर गन्ना, धान और गेहूँ के न्यूनतम साझा मूल्य को कम से कम दो गुना जर देना चाहिए। साथ ही, प्रत्येक कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को संवैधानिक श्रेणी मील। यह कुमायूं विश्वविद्यालय के यशश्वी कुलपति  प्रो० के० एस० राणा जी के पोस्ट के संदर्भ से लिखा गया है।