Shri ramcharitmanas

नर नारायन सरिस सुभ्राता।
जग पालक बिसेषि जन त्राता।।
भगति सुतिय कल करन बिभूषन।
जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  र और म ये दोनों अक्षर नर-नारायण के समान सुन्दर भाई हैं।ये जगत का पालन करने वाले और विशेष रूप से भक्तों की रक्षा करने वाले हैं।ये भक्तिरूपिणी सुन्दर स्त्री के कानों के सुन्दर आभूषण अर्थात कर्णफूल हैं और जगत के हित के लिए निर्मल चन्द्रमा और सूर्य हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  नर और नारायण का अवतार धर्म की पत्नी दक्षकन्या मूर्ति के गर्भ से दो भाइयों के रूप में हुआ था।उन्होंने आत्मतत्व को लक्षित करने वाला कर्मत्याग रूप कर्म का उपदेश दिया।वे बद्रिकाश्रम में आज भी विराजमान हैं।ये भगवान के ही दो रूप हैं।रामनाम के दोनों अक्षर भी जगत का पालन और भक्तों की रक्षा करते हैं।
  विनयपत्रिका में गो0जी इनकी विशेष वन्दना करते हैं---
नौमि नारायणम् नरम् करुणायनम् ध्यान-पारायणम् ज्ञान-मूलं।
अखिल संसार उपकार कारण,सदयहृदय, तपनिरत,प्रणतानुकूलम्।
पुण्य वन शैलसरि बद्रिकाश्रम सदासीन पद्मासनम् एकरूपम्।
सिद्ध योगीन्द्र वृंदारकानन्दप्रद भद्रदायक दरस अति अनूपम्।।
  अर्थात मैं उन श्री नर-नारायण कोनमस्कार करता हूँ जो करुणा के स्थान, ध्यान के परायण और ज्ञान के कारण हैं।जो समस्त संसार का उपकार करने वाले, दयापूर्ण हृदय वाले, तपस्या में लगे हुए और शरणागत भक्तों पर कृपा करने वाले हैं।जो पवित्र वन,पर्वत और नदियों से पूर्ण बद्रिकाश्रम में सदा पद्मासन लगाये एकरूप से अटल विराजमान रहते हैं।जिनका अत्यन्त अनुपम दर्शन सिद्ध,योगीन्द्र और देवताओं को भी आनन्द और कल्याण का देने वाला है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।